Monday, May 14, 2012

मेरे छोटे से शहर मैं कार्तिक माह की पूर्णिमा पर एक मेला लगता था और आज भी लगता है . इस मेले मैं अमीर गरीब आसपास के गांव वाले बड़े छोटे सब लोग झुण्ड के झुण्ड आते थे (शायद अभी भी आते हो). घूमना फिरना मौज मस्ती खेल नौटंकी गाना बजाना देखना खाना पीना और एन्जॉय करना. कुछ मुफ्त मैं और कुछ बहुत ही कम या उचित दाम पर.
इधर  महानगर के मॉल मैं आज तक मेने कोई गांव वाला या गरीब आदमी नही देखा . मॉल में शायद ही कोई मनोरंजन मुफ्त मैं मिलता हो . खानापीना बेतहाशा महंगा और लोग अपने मैं मस्त. मूवी देखना एक महंगा सौदा.
क्या आज की बाजारी व्यवस्था गरीबो को मनोरंजन से भी वंचित कर रही है ? मेले ठेले सर्कस आदि विलुप्त होते जा रहे हैं  जो आदमी मॉल की महंगाई को ना साध पाए तो अपने बीवी बच्चों को लेकर कहा जाये ?



Sunday, May 13, 2012

ये आमिर खान कुछ भी हो आदमी कमाल का है , पिछले हफ्ते भी रुलाया था आज भी रुला दिया . इसके साथ के सितारे जब वाहियात फिल्म और शो कर रहे हैं उस समय ये कन्या भ्रूण हत्या और बच्चों के यों शोषण की बात कर  रहा है . पिछले हफ्ते लगा था साला नौटंकी है , संजीदा मुद्दों को भी पैसा कमाने का जरिया बना रहा है पर आज कुछ अलग सा अहसास हुआ . शायद अपने बच्चों को देख कर जो इस समय कार्टून देख रहे है थे बेटा बुखार मैं है और बेटी भगवान जी से बोल रही है की भेया को अच्छा कर दो .
आमिर शायद तुम अलग हो वाकई ..........